से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Wednesday, April 1, 2009

BREAKING NEWS

जनता बेचारी Confuse हो रही है,
और चैनलों की BREAKING NEWS हो रही है..

साम, दाम, दंड और भेद की Policy,
TRP बढाने में USE हो रही है...!!

छज्जे पे बिल्ली, कमिशनर का कुत्ता,
बाघों की लव स्टोरी ये NEWS हो रही है..??



इन बोलती तस्वीरों के बारें में क्या लिखूँ, ये तो चैनल्स की हालत बयां कर ही रहीं हैं. आज एक ऐसे मुद्दे पे बात करता हूँ, जो रह-रह कर आत्मा को कचोटता है.

दिल्ली में हुए बम धमाकों के आरोपियों के साथ बाटला हाउस में हुई मुठभेड़ के बाद जब 20 सितम्बर, शनिवार की दोपहर श्री करनैल सिंह जी (JCP, Delhi Police) प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तब एक रिपोर्टर ने पूछा "सर हो सकता है आतंकवादियों ने हथियार self defense के लिए रखे हुए हों"

ये सुन के ऐसे मन किया कि करनैल जी को उठ के एक चमाट लगाना चाहिए था उस रिपोर्टर के मुँह पर!! उस से पूछना चाहिए था कि उसका ता~अल्लुक़ किस चैनल या अख़बार से है? अरे AK-47, AK-56 self defense के लिए...!! श्री मोहन शर्मा को गोलियाँ मार के शहीद कर दिया वो self defense था...?? रिपोर्टर हो तो रिपोर्टर की तरह पेश आओ, ऐसी नादानी वाली बात तो एक बच्चा भी नहीं कर सकता!!

और सबसे बड़ी बात यहाँ गौर करने वाली ये है कि हमारे किसी नेता या अभिनेता की छींक को BREAKING NEWS बनाकर दिन में 100-100 बार दिखाने वाले हमारे मीडिया ने इस बेवकूफ़ी भरे सवाल पर कोई टिप्पणी नहीं की!! वो तो प्रेस कॉन्फ्रेंस का live telecast था इसलिए एक बार on air आ भी गया. पर उसके बाद तो इस चीज़ को एकदम दबा दिया गया. क्यूँ? क्योंकि ये सब एक ही बिरादरी के हैं, इसलिए??

मुझे तो समझ नहीं आता इसे पत्रकारिता का गिरता स्तर कहूँ या तथाकथित बुद्धिजीवियों का मानसिक दीवालियापन?? हाथ में क़लम आ गयी और थोबड़े के आगे कैमरा तो बिल्कुल ही पगला जाते हैं...!!

मेरे कईं दोस्त मुझसे सवाल करते हैं कि तू मीडिया से इतना खफ़ा क्यूँ रहता है? वैसे भी जिस industry में तू काम कर रहा है, तुझे media से बना के रखनी चाहिए. कल को कहीं थोडा-बहुत नाम कमा लिया तो जावेद अख़तर और प्रसून जोशी की तरह तू भी किसी चैनल के पैनल में जुड जाना. इसके जवाब में मैं सिर्फ इतना कहता हूँ कि मुझे किसी से कोई ज़ाती खुंदक नहीं है, पर देश का एक सबसे ज़िम्मेदार स्तम्भ जब ताक़त के नशे में चूर होकर पागल हाथी की तरह बौरा जाए तो किसी को तो उसे क़ाबू में लाने की कोशिश करनी होगी?

अपने मीडिया के मित्रों से भी आज मेरा यही सवाल है - कि देश में होने वाली हर ग़लत हरक़त को आप अपने कैमरों में क़ैद करके जनता को दिखाते हो, पर जब आपके क़दम बहकें तो हिंदुस्तान का आम आदमी क्या करे??

11 comments:

  1. शुभम करोति मंगलम...आप शुभम हैं, तो मंगल ही करेंगे...संस्कृत की ये लाइनें एकदम गलत लिखी हैं मैंने, सही वाली पता होने के बावज़ूद...क्या करूं, मीडिया लाइन में हो रही अंधेरगर्दी का असर मुझ पर भी बेतरह-बेभाव पड़ रहा है...ख़ैर, ग़लती उस पत्रकार की नहीं रही होगी (मैं उसे जाने बिना पक्ष ले रहा हूं), क्योंकि आजकल पढ़े-लिखे-कढ़े (कढ़े, बोले तो अनुभवसिद्ध) पत्रकार पत्रकारिता में नहीं दिखाई देते. ब्लॉगिंग में ज़रूर कुछ पढ़ाकुओं के दर्शन हो जाते हैं...देखिए, एक ज़माने में तो मज़ाक-मज़ाक में ये भी कहा जाने लगा था कि जो लड़के आईएएस बनने इलाहाबाद और दिल्ली आते थे, वो जब मेंस से आगे नहीं निकल पाते थे, तो पत्रकार बन जाते थे...वो मज़ाक भी आज से तो अच्छा ही था,...कम से कम कुछ जानते-सुनते तो थे उस टाइप के पत्रकार भी...आजकल पत्रकारिता को लेकर तो अवेयरनेस बढ़ी है, लेकिन इस बारे में नहीं कि कुछ लिखने से पहले बहुत-सारा पढ़ना ज़रूरी है। नाश हो सर्च इंजनों का, जिन्होंने स्मृति की धार एकदम कुंद करके रख दी है. अच्छा होता जो चैनलों के कर्णधार डिप्लोमा की जगह व्यावहारिक ज्ञान को भी महत्व देते। वैसे, एक बात का खंडन मैं फिर भी करूंगा कि पत्रकारिता दिशाविहीन हो गई है, अब भी मीडिया में पुराने और बेशक कुछ नए भी, ऐसे लोग बचे हैं...जो चिंतन और लेखन को आगे ले जा रहे हैं।

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  2. sabse pahael to aapko sadhuvad...! advertizing industry me hokar media ki poll kholne ke liye! aapne jo tasveere lagai hai vo ye sabit karati hai ki aap is baare me kitne chintit hai? lekin afsos ki ye tasveere itni aam ho gai hai ki ab to log inhe dekh kar hasne lage hai. in sabke beech jo cheez kamzor hui hai vo hai loktantr ka chotha stambh. trp ki is duniya me sabkuch bikta hai. aur jo bikta hai vo hi dikhta hai. ye sab sirf isliye hai kyoki abhivyakti ki azadi ke naam par media ke liye abhi tak koi code of conduct nahi bana hai. media ke liye lakshman rekha khichane ka vakt ab aa gaya hai! media me entry par bhi vichar kiye jaane ki zaroorat hai. jab tak kabil log media me (yahan medai se mara matalab tv news media se hai) nahi ayenge tab tak ye sab chalta rahega ! iske liye ek paar-dardarshi chayan prakriya ko viksit karane ki zaroorat hai. govt aur mesia ko mil kar is mamle par ek common regulatory authority banani chahiye ! kyonki hindustan me agar media dishaheen ho gaya to ye loktantr ke liye ghatak hoga !

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  3. hehehe. you know shubham bhaiya mujhe kaunsi line best lagi? "Karnail ji ko uth ke CHAMAAAAT lagana chahiye tha" hehehehe :-)

    aapka aisa roop pehle nahi dekha! just see the word 'CHAMAAT', I liked it very much, poore kho gaye the likhte waqt?

    but ya, to be very honest I do agree with your each and every word. Our media, especially TV Channels have gone crazy, its all bloody TRP game.

    keep doing the good work bro, we are always with you. May Allah bless u with eternal happiness.aameen.
    Jai Hind.

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  4. मीडिया को उन्ही में से किसी के द्वारा आइना दिखाना जरुरी है. अच्छा प्रयास है आपका.

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  5. Tuesday, July 15, 2008
    चैन से सोना है तो टीवी बंद कर दो
    http://rovingwriter.blogspot.com/search?updated-min=2008-01-01T00%3A00%3A00%2B05%3A30&updated-max=2009-01-01T00%3A00%3A00%2B05%3A30&max-results=50
    दोस्त तुम्हारा अपना कहां है ये तो नीलेश के ब्लाॅग से उड़ा लिया।

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  6. @irshaad Ali

    हा हा हा हा हा.... कौन नीलेश?
    इरशाद मियां google images में जाकर "Indian Media" सर्च करो, हज़ार तस्वीरें मिलेंगी ऐसी. यहाँ बात तस्वीरों की नहीं, उस बड़े मुद्दे की है जो लफ्ज़ों में बयां किया है... खैर आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया, जुड़े रहें..

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  7. बहुत सही कह रहे हैं आप ... पता नहीं पत्रकारिता में क्‍या पढा है इन्‍होने ... या फिर नौकरी में टिके रहने का इतना दवाब है ... कुछ समझ नहीं आता ... बस टी वी देखना छोड चुकी हूं ... क्‍योंकि ये मेरे वश में है।

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  8. एक समय था जब राजनीती को सेवा का सबसे अच्छा क्षेत्र मन जाता था.... फिर हालत ख़राब हुए.. .नेता एक गाली की श्रेणी में पहुँच गयी... आज मन ही मन सब नेतगिरी और नेताओ से चिड़ते है. वैसे ही कुछ कुछ हालत अब पत्रिकारिता के होते जा रहे है... जो अब तक सबको साधने का काम करता था... अब उसे खुद को ही साधने की और ध्यान देना जरुरी है... ये पूर्ण सत्य है.. वर्तमान में पत्रिकारिता दिशा से भटक गया है.

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  9. बहुत सही बात.मैं पिछले बीस वर्षों से पत्रकारिता से जुडी हूं.तब से लेकर आज तक जो परिवर्तन हुए,वे इतने निराशाजनक हैं,कि अब उन पर चर्चा ही व्यर्थ है.चैनलों ने तो पत्रकारिता के नाम पर मज़ाक करने की ठान ही ली है.सुन्दर आलेख.

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  10. Sangeeta Ji, Vandana Ji, 'dil dukhta hai bandhu' - hausla~afzayi ka bahut shukriya!!

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  11. Han Subham ji ... Vandana Ji bhi apka samarthan kar rahi.

    Aaj ki patrkarita, desh ko durdasha ka pramukh karan hai. Aaj hame desh ki halat sahi hone ki ashayein jitni kam hain wo es biki huyi patrkarita ki hi wajah se. Kyonki yahi patrkarita janta ko shasak se jodti hai. Achchi post.

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