से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Thursday, October 4, 2012

भारत निर्माण की भूल हुयी, दिल से कबूल हुयी..!!

कहते हैं इंसान ग़लतियों का पुतला होता है. गुजिश्ता सालों में एक ग़ती मुझसे भी हो गयी.. पेट के लिए लिखने में इतना मसरूफ़ हो गया कि रूह के लिए लिखना ही भूल गया! खैर, देर आये दुरुस्त आये..!! इस साल अपनी दूसरी किताब "ज़िन्दगी चख ली" लिखकर अपनी ग़ती को सुधारने की कोशिश तो की है.. पर एक और उस ग़ती को कैसे सुधारुं जो पेट के लिये लिखते-लिखते मुझसे हो गयी..


मैं बात कर रहा हूँ कॉंग्रेस सरकार के लिये लिखे गये गाने "भारत निर्माण" की..!! भारत निर्माण का गाना लिखते वक़्त मुझे कतई इल्म नहीं था कि ये सरकार देश में इस तरह खुली लूट मचायेगी.. और जब-जब इनकी लूट के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ उठेगी, ये सरकार भारत निर्माण के विज्ञापन चला-चला कर अपनी साफ़-सुथरी छवि दिखाकर लोगों को बरगालाएगी..

आज जब कभी टी.वी. पर भारत निर्माण का विज्ञापन देखता हूँ तो अफ़सोस होता है कि क्यूँ मैंने इनके लिये लिखा?? क्यूँ रातों को जाग-जाग के ऐसा म्युज़िक तैयार कराया?? क्यूँ एक-एक आलाप पे इतनी मेहनत की?? क्यूँ 40 डिग्री की तपती-सडती धूप में भाग-भाग के शूटिंग की??

जिस सरकार का हाथ आम आदमी के साथ होने का दावा करता था, आज वो सरकार आम आदमी से बहुत दूर होती जा रही है. आम आदमी को तो इस सरकार ने हाथ फैलाने पे मजबूर कर दिया है. आम आदमी को इस सरकार ने वास्तव में आम की तरह समझ लिया है... कभी काट के खाया तो कभी चूस लिया..!! भारत निर्माण के नाम पे इस सरकार ने भारत को दुनिया भर में बदनाम ही किया है.. 



भारत निर्माण Lyrics
दिल में उठा था इक अरमान
सबसे हसीं हो हिंदुस्तान
तरक्की की जो राह चुनी
उसे नाम दिया भारत निर्माण

हुआ स्कूल में दाखिल हर बच्चा,
सड़क बनी रस्ता कच्चा..
रोज़गार की लगी झड़ी,
हुयी रोशन राहें खड़ी-खड़ी..
माँ की ममता को मिला सुकून,
और पूरे परिवार को स्वाभिमान..
ऐसे हुआ भारत निर्माण..
ऐसे हुआ भारत निर्माण..
भारत निर्माण का सपना बुना, तरक्की हुयी कईं गुना..!!
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दोस्तों, ज़िन्दगी में "undo" बटन नहीं होता.. इसलिए मैं अपने लिखे को तो नहीं मिटा सकता, पर किसी के पास मेरी इस ग़ती को सुधारने का कोई तरीका या सुझाव हो तो प्लीज़ मुझे ज़रूर बताइयेगा...

शुभकामनाओं  सहित सच्चे भारत निर्माण की उम्मीद में..
शुभम मंगला

Sunday, April 17, 2011

Adult Kavi Sammelan

रामलीला मैदान कवि नगर, ग़ाज़ियाबाद में हर साल होने वाले 'अट्टहास' कवि सम्मलेन से वापस आया हूँ. 18 साल हो गए 'अट्टहास' को होते हुए और जो नज़ारा आज देखा वो दुनिया के किसी भी कवि सम्मलेन में शायद ही कभी दिखा हो! आज के 18वें 'अट्टहास' ने वाकई ये साबित कर दिया कि ये कवि सम्मलेन आज 18 साल का बालिग़ समझदार हो गया है! कवि रमेश शर्मा जी कि कविता "सब अभी से बदल गया माँ" सुनके मैदान में बैठे हज़ारों लोगों की आँखों में पानी भर आया. और जैसे ही ये मार्मिक कविता ख़त्म हुयी इन्द्रदेव भी ख़ुद पे क़ाबू नहीं रख पाए. रात के 2 बजे अचानक भरी बारिश होने लगी, पर सलाम है ग़ाज़ियाबाद के कविता प्रेमियों को जो भरी बरसात में भीगने या बीमार होने की चिंता किये बगैर कवि सम्मलेन में डटे रहे. कविता के ऐसे प्रेमी विरले ही देखने को मिलते हैं.

राखी सावंत की एक छींक या मल्लिका शेरावत की एक हिचकी को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दिखाने वाले मीड़िया से एक सवाल है कि - आप दम तोड़ते साहित्य के दौर में कवियों और कविता प्रेमियों का ये जज़्बा क्यूँ नहीं दिखाते हो? क्यूँ कोई सार्थक ख़बर दिखा कर साहित्य के तरफ़ देशवासियों का ध्यान नहीं खींचते हो?

मेरे पास फ़िलहाल तस्वीरें और विडीयोज़ नहीं हैं कि किस तरह लोगों ने भरी बारिश में कविताओं का मज़ा लूटा. तालियों कि गडगडाहट से पूरा रामलीला मैदान गूँज उठा. मुझे फ़क्र है कि मैं उस ग़ाज़ियाबाद का रहने वाला हूँ जहाँ सिर्फ़ आदरणीय कृष्ण मित्र जी और डॉ कुंवर बेचैन साहिब जैसे बड़े कवि ही नहीं, बल्कि भरी बरसात में उनको सुनने वाले देश के सच्चे कविता प्रेमी रहते हैं...

एक लड़की जिसकी सगाई हो गयी है और शादी में कुछ महीने बचे हैं... घर के लोगों के बदले बर्ताव को लेकर वो क्या सोचती है-क्या कहती है, इस सुन्दर सोच पे लिखी रमेश भाई की वो कविता जो मेरी आँखों में भी पानी ले आयी थी, आप सबकी नज़र.....




Tuesday, March 8, 2011

Women's Day & Sahir Sahib

8 मार्च, 2011 - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और मेरे पसंदीदा शायर जनाब साहिर लुधयानवी जी का 90वां जन्मदिन! कलम के इस जादूगर की हर एक लिखावट का मैं शुरू से क़ायल रहा हूँ.. अगर इनका सौवां हिस्सा भी मेरी लिखावट में आ जाए तो समझूंगा ये जनम सफ़ल हो गया.. उनके जन्म दिन पर ब्लॉग पे लिखते हुए बहुत मुश्किल होती तय करने में की उनकी कौनसी नज़्म यहाँ पेश करूँ, पर महिला दिवस के पावन अवसर पर उनकी एक नज़्म जो हर बार आँखों में नमी ले आती है, आप सबकी नज़र -

औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया..
जब जी चाहा मसला-कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया..

तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में,
नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में,
ये वो बेईज्ज़त चीज़ है जो, बँट जाती है इज्ज़तदारों में..

मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां, औरत के लिए रोना भी खता,
मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता,
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़, औरत के लिए जीना भी सज़ा..

जिन होंटों ने इनको प्यार किया, उन होंटों का व्यापार किया,
जिस कोख में इनका जिस्म ढला, उस कोख का कारोबार किया,
जिस तन से उगे कोपल बनकर, उस तन को ज़लील-ए-खार किया..

मर्दों ने बनायी जो रस्में, उनको हक़ का फ़रमान कहा,
औरत के ज़िंदा जलने को क़ुरबानी और बलिदान कहा,
क़िस्मत के बदले रोटी दी, और उसको भी एहसान कहा..

संसार की हर इक बेशर्मी ग़ुरबत की गोदी में पलती है,
चकलों ही में आके रूकती हैं, फ़ाकों से जो राह निकलती है,
मर्दों की हवस है जो अक्सर औरत के पाप में ढलती है..

औरत संसार की किस्मत है, फिर भी तकदीर के हेटी है
अवतार पयम्बर जनती है, फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदकिस्मत माँ है जो, बेटों की सेज पे लेटी है..!!


इसे देश की विडंबना कहूँ या समाज के मुँह पे तमाचा के 55 साल पहले लिखे ये अलफ़ाज़ आज के दौर में भी एकदम सच साबित होते हैं! जाने-अनजाने कभी मुझसे किसी नारी का अपमान या कोई बदसलूकी हुयी हो तो दिल से क्षमा याचना करते हुए, शुभकामनाओं सहित -
शुभम

Friday, January 21, 2011

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा"

सुभाष चन्द्र बोस जी की जयंती पर उन्हें, और उनका साथ देने वाले आज़ादी के सभी दीवानों को शत शत नमन! इस पावन अवसर पर कवि गोपाल प्रसाद 'व्यास' जी की कविता से कुछ पंक्तियाँ..


बोले सुभाष इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है,

लो ये काग़ज़ है कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरने वाले जन को सर्वस्व समर्पण करना है,

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है..

ये साधारण पत्र नहीं आज़ादी का परवाना है,

इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिरना है!

साहस से भरे युवक उस दिन देखा बढ़ते ही जाते थे,

चाकू छुरियों कटारियों से अपना रक्त गिराते थे..

फिर उसी रक्त की स्याही में वो अपनी कलम डुबाते थे,

आज़ादी के परवाने ऐसे हस्ताक्षर करते जाते थे..!!



Thursday, December 16, 2010

16 दिसम्बर - विजय दिवस के पावन अवसर पर देश के शहीदों और सीमा पर तैनात रक्षकों को समर्पित



"अमर शहीदां ने सिर दे के रख्या मुंड कहानी दा,
आज़ादी है असल नतीजा वीरां दी क़ुरबानी दा..."









Thursday, November 25, 2010

Afzal, Ajmal, Siyasi duldul..!!

जिस वक़्त आज मैं लिखने बैठा हूँ, दो साल पहले इसी वक़्त पाकिस्तान से एक जहाज रवाना हुआ था, जिसमें बैठे20-22 साल के सिर्फ़ 10 लड़कों ने 26 नवम्बर को मुंबई में मौत का तांडव किया!! सोच के देखो सवा सौ करोड़ का देश और साले 10 पिद्दी पहलवान पूरे 72 घंटे हमें अपने इशारों पे नचाते रहे..



और शर्म की बात ये है कि हमारी सरकारें ऐसे हादसों के बाद भी नहीं जागती. सारी दुनिया ने जिसे क़त्ल-ए-आम करते देखा, हमारी अदालतों और सरकारों को उसके खिलाफ़ सबूत जुटाने और उसे सज़ा सुनाने में डेढ़ साल लग गया.. जिसने बेरहमी से लोगों की लाशें बिछाई, उसी की हिफ़ाज़त के लिए हम लोगों के टैक्स के पैसों से ढाई-ढाई करोड़ की सुरंगे बनायीं हमारी सरकार ने..!! और वो ***** अभी भी हमारे देश की रोटियाँ तोड़ रहा है... क्यूँ? क्यूंकि उसे पता है यहाँ का कानून ढीला है, और सरकार निकम्मी..



अभी पट्ठा हाई कोर्ट में अपील करके बैठा है, फिर सुप्रीम कोर्ट जायेगा, उसके बाद अफ़ज़ल की तरह ये अजमल भी किसी 'प्रतिभाशाली पटिल' की गोदी में सर रख के छुप जाएगा... संसद और 26 नवम्बर जैसे हमले देश के लिए आम बात बन जायेंगे, मैं लिख-लिख के शहीदों को नमन करता रहूँगा और आप पढ़-पढ़ के सराहना..!!



भगवान करे ऐसा दुर्दिन आये उस से पहले इस देश का सोया ज़मीर जाग जाये. मुंबई हमले में मारे गए लोगों और शहीद हुये जवानों की आत्मा के लिए शान्ति की प्रार्थना करते हुये विनीत भाई का एक वीडियो आपकी नज़र..


Monday, November 15, 2010

Godse ke liye God se prarthna..!!

महात्मा गांधी के वध के आरोप में अदालत में चले मुक़दमे में नाथूराम गोडसे जी को फाँसी की सज़ा सुनाई गयी, पर गोडसे जी ने अदालत में अपने काम का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस मुक़दमे के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक किताब में लिखा-"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था. खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे. न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है."





TIME: What was the most difficult thing about killing Gandhi?
Gopal Godse(brother of Nathu Ram Ji): The greatest hurdle before us was not that of giving up our lives or going to the gallows. It was that we would be condemned both by the government and by the public. Because the public had been kept in the dark about what harm Gandhi had done to the nation. How he had fooled them!!
Meenakshi Gangully, Time Delhi Correspondent. TIME (FEBRUARY 14, 2000 VOL. 155 NO. 6)

22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर हमला किया, उससे पहले माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने युद्ध के चलते यह राशि देने को टालने का फैसला लिया पर गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन कर दिया. फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी. ऐसे हालात में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त ने गान्धी का वध कर दिया.

1949 में आज ही के दिन अम्बाला जेल में नाथूराम गोडसे जी को फाँसी पे लटकाया गया था. गोडसे जी की आत्मा के लिए शान्ति की कामना करते हुए....
शुभम