से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Friday, April 10, 2009

हिंदुस्तान बचाना है तो आडवाणी को फाँसी चढ़ा दो...

हिंदुस्तान बचाना है तो आडवाणी को फाँसी चढ़ा दो...दोस्तों ये मैं नहीं, हमारे भारतवर्ष का तथाकथित बुद्धिजीवी और स्व-घोषित सिक्युलर (SICKular) तबका बोल रहा है. बोल भी क्या रहा है, यूँ कहो गला फाड़-फाड़ के चिल्ला रहा है. सुबह से लेकर रात तक, किसी भी वक़्त, कोई भी न्यूज़ चैनल लगा लो.. ऐसा लगता है भारत देश में अगर आज कोई समस्या है तो उसका नाम है 'लाल कृष्ण आडवाणी'

आडवाणी जी ने कल गांधीनगर से अपना चुनावी पर्चा 12 बजकर 39 मिनट पर क्या भरा कि एक न्यूज़ चैनल के पेट में पूरे दिन यही दर्द उठता रहा कि उन्होंने 'शुभ मुहूर्त' के हिसाब से पर्चा क्यूँ भरा...पर्चा भरने से पहले पूजा क्यूँ की...???

वैसे मैं ब्लॉग पे लिखते वक़्त किसी व्यक्ति या संस्था का नाम लेने से परहेज़ करता हूँ, लेकिन आज नहीं!!

NDTV India के प्रोग्राम 'Election Point' में अभिज्ञान प्रकाश ने कल की बहस का मुद्दा ही ये रखा कि आडवाणी ने 12.39 पर पर्चा क्यूँ भरा?? और मज़े कि बात इस मुद्दे पे राय देने के लिए स्पेशल गेस्ट के तौर पे बुलाया महेश भट्ट को, जिसने अपने मानसिक दीवालियेपन का सबूत देने में कोई कसार नहीं छोड़ी..!!

महेश भट्ट बोले कि हम 21वीं सदी में जा रहे हैं, हमें इन पुरानी परम्पराओं को तोड़ना होगा...ये पूजा-हवन-ज्योतिष-मुहूर्त वगैरह-वगैरह इन सबसे बाहर निकलना होगा, तभी बनेगा नया भारत. अब कोई उस पागल से पूछे कि तू अपनी फिल्म से पहले मुहूर्त क्यूँ करता है? पहले खुद को और अपनी industry को तो 21वीं सदी में ले जा, बंद करा दे बॉलीवुड में मुहूर्त का चलन. खैर इस पागल पे अपना और आपका वक़्त ज़्यादा बर्बाद नहीं करूँगा...फ़टाफ़ट आता हूँ दूसरे पागल पर. ना-ना माफ़ कीजिये पागल नहीं, ज्ञानी पर...उसके तो नाम में ही इतना ज्ञान है कि बस...!!

मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि आडवाणी जी ने अभिज्ञान की कौनसी भैंस खोल दी कि वो सारे दिन इन्ही के पीछे पड़ा रहता है!! सोनिया और राहुल ने भी तो पर्चा भरने से पहले पूजा की थी...

अरे भाई ये हमारी संस्कृति है, हर शुभ काम से पहले भगवन का नाम लेना... अब अभिज्ञान भैया बुरा मत मानना तुम्हारी शादी होगी तो मम्मी-पापा को बोल देना कि मुहूर्त-वुहुर्रत बेकार की बातें हैं, या जब खुद पापा बनोगे तो बच्चे के नामकरण या बाकी संस्कार मत करना...क्योंकि हमें इंडिया को 21वीं सदी में लेके जाना है ना...

अगर कहीं ये लेख अभिज्ञान भाई कि नज़र तक आया है तो इन कड़वे शब्दों के लिए माफ़ी चाहूँगा, लेकिन मेरे दोस्त तुमने इतना ज़हर पिलाया है कि ज़ुबां ऐसी ही हो गयी है अब...!!

लेकिन ये हाल सिर्फ NDTV या अभिज्ञान का नहीं है, एक और चैनल भी आडवाणी जी को लपेटने में लगा था. वहाँ मुद्दा था कि आडवाणी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को ये क्यूँ कहा कि "ओवर कांफिडेंस से बचना"

अब कोई इनसे पूछे कि यार हर छोटी-बड़ी ज़ंग, हर मैच या हर छोटे-बड़े इम्तिहान से पहले घर के बड़े-बुजुर्ग, टीम का कप्तान या सेना का जनरल यही कहता है कि 'ओवर कांफिडेंस में हार मत जाना' तो अगर आडवाणी जी ने अपने कार्यकर्ताओं को यह बोल दिया तो इसमें क्या बवाल हो गया? वैसे भी ये उनकी पार्टी का अन्दुरुनी मामला है... ये तो किसी भी एंगल से बहस का मुद्दा नहीं है, फिर इस पर घंटों चर्चा क्यूँ...??

खैर इसे भी माफ़ किया, अब ज़रा थोड़ा और पीछे चलते हैं.. तारीख़ 29 मार्च, रविवार का दिन..आडवाणी जी की प्रेस कांफ्रेंस!! यक़ीन मानिए पौने घंटे की वो प्रेस कांफ्रेंस देख के पहली बार हिंदुस्तान के लोकतंत्र में आस्था जागी थी. और शुक्र है कि मैंने वो पूरी कांफ्रेंस लाइव देख ली थी, वरना इन मीडिया वालों की बदतमीज़ी भी समझ नहीं आती...!!
आडवाणी जी ने वो प्रेस कांफ्रेस बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे के लिये बुलवाई थी मुद्दा था देश का 25 लाख करोड़ रुपया जो कि काला धन बनकर स्विस बैंको में चला गया है. कुछ समय पहले जर्मन गर्वनमेंट के हाथ उन लोगों की जानकारी लगी जिनका पैसा स्विस बैंकों में जमा है, उन्हें यह भी पता लगा कि किसका कितना पैसा है वहाँ, तो उन्होंने सारी दुनिया में ऐलान किया कि जो-जो देश हमसे पूछेगा, हम उन्हें बतायेंगे कि वहां पर किस आदमी का कितना-कितना धन इन बैंकों में है.

जिस समय यह खबर आई उस समय आडवाणी जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर जर्मनी से उन हिन्दुस्तानियों के नाम पूछने का सुझाव दिया जिनका पैसा वहाँ जमा है, बदले में सरकार की तरफ से टालू जवाब आ गया. इसलिए इस बार यह बात पब्लिक फोरम पर आडवाणी जी ने कही, कि पिछले पत्र की तरह यह भी दबा न दी जाये.

पूरी प्रेस कांफ्रेंस में आडवाणी ने बताया कि किस तरह इस पैसे का इस्तेमाल देश की बेहतरी के लिये होना चाहिये, और उन्होंने इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया, और यह भी कहा कि वो जरूर पूछेंगे जर्मनी से कि बताओ उन लोगों के नाम जिन्होंने देश को चूना लगा लगा कर पैसा स्विस बैंकों में भेज दिया.

एक पत्रकार ने उनसे कहा कि अगर उन लोगों के नाम पता चल गये जिनका इतना पैसा जमा है तो भूचाल आ जायेगा. तो आडवाणी जी ने उससे कहा कि मैं चाहता हूँ कि ऐसा हो, उन लोगों के नाम खुलें जिससे देश का पैसा देश में वापस आ पाये.

लगभग 45 मिनिट चली यह प्रेस कांफ्रेस, और बातें सारी यहीं हुईं, लेकिन अंत होते-होते एक सयाने पत्रकार ने पूछ लिया कि वरुण गांधी पर क्या खयाल हैं, तो आडवाणी ने वही कहा जो वह कहते आ रहे हैं, कि वरुण ने कहा है कि बयान मेरा नहीं है.
और ज़रा देखो इन महान पत्रकारों की जमात ने 45 मिनिट की कांफ्रेंस में से क्या निष्कर्ष निकाला...??

'आडवाणी ने वरुण का बचाव किया'
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने कहा कि देश का 285 करोड़ रुपया काला धन बन चुका है
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने मनमोहन से उन लोगों का नाम पूछने को कहा जिनका पैसा है यह
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि इस पैसे को देश में वापस लाना है
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने कहा कि भूचाल आये तो भी उन लोगों के नाम जगजाहिर होने चाहिये
  • इन्होंने सुना बस वरुण, देश को यह भूल गये
दरअसल इन्होंने बस वही सुना जिसे सुनने की परमिशन इन्हें इनके आकाओं ने दी. पता नहीं हमारे मीडिया वाले किसके नाम के घुंघरू पैरों में बाँध के एक बे-गैरत तवायफ़ की तरह नाच रहे हैं..
तुफैल भाई की चार पंक्तियाँ इन मीडिया वालों के नाम -
सियासत का नशा सिम्तों तक जादू तोड़ देती है
हवा उड़ते हुए पंछी के बाजू तोड़ देती है
सियासी भेड़ियों थोड़ी-बहुत गैरत ज़रूरी है
तवायफ़ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है...
तवायफ़ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है...!!
साभार विश्व भाई...'वो चुप नहीं'

Sunday, April 5, 2009

उसके लिये


सुनो ए फूल सी लड़की
मेरे दिल के कच्चे आँगन में
कभी किसी दिन,
किसी उदास मौसम में,
किसी वीरान लम्हे में,
चुपके से, दबे पाँव उतरो तो ज़रा
मेरी आँखों पे
अपनी नरम-मुलायम
हथेलियाँ रख दो
और हँसते हुए कहो
बताओ कौन...??
बूझ लिया तो
"हम" तुम्हारे
ना बूझा तो
"तुम" हमारे...!!




बारिश
उसने कहा "बहुत हसीं हैं आपकी आँखें"
और हम ये सोच कर दिल में हँस दिए
उस बे-ख़बर को कौन समझाए..
बारिश के बाद ही मौसम निखरता है...!!


आओ बाँटे
आओ साथ में दुनिया को बाँट लें..
समंदर तुम्हारा, लहरें मेरी..
आसमां तुम्हारा, सितारें मेरे..
सूरज तुम्हारा, रोशनी मेरी..
चलो ऐसा करते हैं, सब कुछ तुम्हारा..
और तुम मेरी..!!





सुनो
बहुत वीरान मौसम में
तुम्हारे दिल में रोशन इक दीया
मेरी निशानी है..
अगर मैं भूल भी जाऊँ
तो इतना याद रखना तुम
समंदर मेरा क़िस्सा है,
हवा मेरी कहानी है...!!

Wednesday, April 1, 2009

BREAKING NEWS

जनता बेचारी Confuse हो रही है,
और चैनलों की BREAKING NEWS हो रही है..

साम, दाम, दंड और भेद की Policy,
TRP बढाने में USE हो रही है...!!

छज्जे पे बिल्ली, कमिशनर का कुत्ता,
बाघों की लव स्टोरी ये NEWS हो रही है..??



इन बोलती तस्वीरों के बारें में क्या लिखूँ, ये तो चैनल्स की हालत बयां कर ही रहीं हैं. आज एक ऐसे मुद्दे पे बात करता हूँ, जो रह-रह कर आत्मा को कचोटता है.

दिल्ली में हुए बम धमाकों के आरोपियों के साथ बाटला हाउस में हुई मुठभेड़ के बाद जब 20 सितम्बर, शनिवार की दोपहर श्री करनैल सिंह जी (JCP, Delhi Police) प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तब एक रिपोर्टर ने पूछा "सर हो सकता है आतंकवादियों ने हथियार self defense के लिए रखे हुए हों"

ये सुन के ऐसे मन किया कि करनैल जी को उठ के एक चमाट लगाना चाहिए था उस रिपोर्टर के मुँह पर!! उस से पूछना चाहिए था कि उसका ता~अल्लुक़ किस चैनल या अख़बार से है? अरे AK-47, AK-56 self defense के लिए...!! श्री मोहन शर्मा को गोलियाँ मार के शहीद कर दिया वो self defense था...?? रिपोर्टर हो तो रिपोर्टर की तरह पेश आओ, ऐसी नादानी वाली बात तो एक बच्चा भी नहीं कर सकता!!

और सबसे बड़ी बात यहाँ गौर करने वाली ये है कि हमारे किसी नेता या अभिनेता की छींक को BREAKING NEWS बनाकर दिन में 100-100 बार दिखाने वाले हमारे मीडिया ने इस बेवकूफ़ी भरे सवाल पर कोई टिप्पणी नहीं की!! वो तो प्रेस कॉन्फ्रेंस का live telecast था इसलिए एक बार on air आ भी गया. पर उसके बाद तो इस चीज़ को एकदम दबा दिया गया. क्यूँ? क्योंकि ये सब एक ही बिरादरी के हैं, इसलिए??

मुझे तो समझ नहीं आता इसे पत्रकारिता का गिरता स्तर कहूँ या तथाकथित बुद्धिजीवियों का मानसिक दीवालियापन?? हाथ में क़लम आ गयी और थोबड़े के आगे कैमरा तो बिल्कुल ही पगला जाते हैं...!!

मेरे कईं दोस्त मुझसे सवाल करते हैं कि तू मीडिया से इतना खफ़ा क्यूँ रहता है? वैसे भी जिस industry में तू काम कर रहा है, तुझे media से बना के रखनी चाहिए. कल को कहीं थोडा-बहुत नाम कमा लिया तो जावेद अख़तर और प्रसून जोशी की तरह तू भी किसी चैनल के पैनल में जुड जाना. इसके जवाब में मैं सिर्फ इतना कहता हूँ कि मुझे किसी से कोई ज़ाती खुंदक नहीं है, पर देश का एक सबसे ज़िम्मेदार स्तम्भ जब ताक़त के नशे में चूर होकर पागल हाथी की तरह बौरा जाए तो किसी को तो उसे क़ाबू में लाने की कोशिश करनी होगी?

अपने मीडिया के मित्रों से भी आज मेरा यही सवाल है - कि देश में होने वाली हर ग़लत हरक़त को आप अपने कैमरों में क़ैद करके जनता को दिखाते हो, पर जब आपके क़दम बहकें तो हिंदुस्तान का आम आदमी क्या करे??