से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Thursday, December 16, 2010

16 दिसम्बर - विजय दिवस के पावन अवसर पर देश के शहीदों और सीमा पर तैनात रक्षकों को समर्पित



"अमर शहीदां ने सिर दे के रख्या मुंड कहानी दा,
आज़ादी है असल नतीजा वीरां दी क़ुरबानी दा..."









Thursday, November 25, 2010

Afzal, Ajmal, Siyasi duldul..!!

जिस वक़्त आज मैं लिखने बैठा हूँ, दो साल पहले इसी वक़्त पाकिस्तान से एक जहाज रवाना हुआ था, जिसमें बैठे20-22 साल के सिर्फ़ 10 लड़कों ने 26 नवम्बर को मुंबई में मौत का तांडव किया!! सोच के देखो सवा सौ करोड़ का देश और साले 10 पिद्दी पहलवान पूरे 72 घंटे हमें अपने इशारों पे नचाते रहे..



और शर्म की बात ये है कि हमारी सरकारें ऐसे हादसों के बाद भी नहीं जागती. सारी दुनिया ने जिसे क़त्ल-ए-आम करते देखा, हमारी अदालतों और सरकारों को उसके खिलाफ़ सबूत जुटाने और उसे सज़ा सुनाने में डेढ़ साल लग गया.. जिसने बेरहमी से लोगों की लाशें बिछाई, उसी की हिफ़ाज़त के लिए हम लोगों के टैक्स के पैसों से ढाई-ढाई करोड़ की सुरंगे बनायीं हमारी सरकार ने..!! और वो ***** अभी भी हमारे देश की रोटियाँ तोड़ रहा है... क्यूँ? क्यूंकि उसे पता है यहाँ का कानून ढीला है, और सरकार निकम्मी..



अभी पट्ठा हाई कोर्ट में अपील करके बैठा है, फिर सुप्रीम कोर्ट जायेगा, उसके बाद अफ़ज़ल की तरह ये अजमल भी किसी 'प्रतिभाशाली पटिल' की गोदी में सर रख के छुप जाएगा... संसद और 26 नवम्बर जैसे हमले देश के लिए आम बात बन जायेंगे, मैं लिख-लिख के शहीदों को नमन करता रहूँगा और आप पढ़-पढ़ के सराहना..!!



भगवान करे ऐसा दुर्दिन आये उस से पहले इस देश का सोया ज़मीर जाग जाये. मुंबई हमले में मारे गए लोगों और शहीद हुये जवानों की आत्मा के लिए शान्ति की प्रार्थना करते हुये विनीत भाई का एक वीडियो आपकी नज़र..


Monday, November 15, 2010

Godse ke liye God se prarthna..!!

महात्मा गांधी के वध के आरोप में अदालत में चले मुक़दमे में नाथूराम गोडसे जी को फाँसी की सज़ा सुनाई गयी, पर गोडसे जी ने अदालत में अपने काम का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस मुक़दमे के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक किताब में लिखा-"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था. खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे. न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है."





TIME: What was the most difficult thing about killing Gandhi?
Gopal Godse(brother of Nathu Ram Ji): The greatest hurdle before us was not that of giving up our lives or going to the gallows. It was that we would be condemned both by the government and by the public. Because the public had been kept in the dark about what harm Gandhi had done to the nation. How he had fooled them!!
Meenakshi Gangully, Time Delhi Correspondent. TIME (FEBRUARY 14, 2000 VOL. 155 NO. 6)

22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर हमला किया, उससे पहले माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने युद्ध के चलते यह राशि देने को टालने का फैसला लिया पर गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन कर दिया. फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी. ऐसे हालात में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त ने गान्धी का वध कर दिया.

1949 में आज ही के दिन अम्बाला जेल में नाथूराम गोडसे जी को फाँसी पे लटकाया गया था. गोडसे जी की आत्मा के लिए शान्ति की कामना करते हुए....
शुभम

Thursday, November 11, 2010

Khoobsurat Mod











बोझ

रुई की गठरी लेके चलना
तब तक ही अच्छा लगता है
जब तक बारिश ना हो.
बारिश में वो बोझ बन जाती है...
शायद, उतार देने में ही समझदारी है!!














सवाल

वो जब भी मुझसे मिलती थी
हर बार मासूमियत से पूछा करती थी के
"तुम मेरे हो ना?"
और मैं..
हर बार उसके चेहरे को छू कर क़सम खाया करता था..
पर काश,
एक बार मैंने भी उससे पूछ लिया होता
कि "तुम मेरी हो ना?"








बेवफ़ाई

उसने मेरा हाथ थाम के कहा
"इतने गरम हाथ..!!वफ़ा की निशानी होते हैं"
और मुझे अब याद आया है..
कि..
उस वक़्त..
उसके हाथ कितने ठन्डे थे...!!





उदासी का सबब

तू अनजान ही बेहतर था
के मेरे जीने मरने से तुझे कोई फरक नहीं पड़ता था..
वैसे फरक तो तुझे
मेरे जीने मरने से अब भी नहीं पड़ता,
पर अब यही बात रोज़ मेरी जान ले लेती है...!!
-हर्ष भाई (हर्ष छाया)





ख़ूबसूरत मोड़

ता`अर्रुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर,
ता`अल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा..
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा...!!
- साहिर लुधयानवी साहब

Tuesday, November 2, 2010

52 पत्तों की दिवाली

कल रात पुराने दोस्तों के साथ ताश की महफ़िल जमी थी, कि उसकी 5-6 साल की भतीजी कमरे में आकर मासूमियत से पूछती है "दिवाली पे ताश क्यूँ खेलते हैं.. ताश खेलना तो बुरी बात है ना..??"
उसके इस सवाल को उस वक़्त तो हम टाल गये, पर घर वापस आते वक़्त ज़हन में कुछ ख़याल चलते रहे..

होली, दिवाली, दशहरा.. हमारा कोई भी त्यौहार बुराई का प्रतीक या समर्थक नहीं है.. ये तो हम ही लोगों ने इन्हें बुरा रूप दे दिया है.. अगर सही नज़रिये और सकारात्मक सोच से देखें तो हर रीत-हर रिवाज़ के बहुत गहरे मायने हैं..!!


आओ अगले 52 हफ़्तों तक, ताश के 52 पत्तों की तरह हम भी एकजुट होकर रहें. और एक दूसरे की ज़िंदगियाँ ख़ुशियों से रोशन कर दें.

ताश खेलने के असल मायने जब तक जान पाता हूँ, तब तक इस ख़याल के साथ सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें..!!
शुभम


Friday, October 22, 2010

Bhookha-Nanga Hindustan..??

"मनु भैया को पुलिस ले गयी, शुभम भैया कुछ करो.."

प्रिंसी के ये शब्द सुनकर यकीन ही नहीं हुआ. क्योंकि इनके परिवार को तकरीबन पिछले 7-8 सालों से जानता हूँ.. बहुत ही सीधे-शरीफ़ लोग हैं.. कश्मीर से विस्थापित होने के बाद यहीं दिल्ली (ग़ाज़ियाबाद) में रह रहे हैं..

मनु से मिलने के बाद कल देर शाम तक सारी कहानी का पता चला.. और अब कुछ सवाल आत्मा को कचोट रहे हैं..

• हम कौनसे हिंदुस्तान में रह रहे हैं यार?
• कब तक हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी अपने स्वाभिमान का अपमान कराते रहेंगे?

दिल्ली में हुयी 'आज़ादी-बस एक रास्ता' सेमिनार में हुर्रियत के कट्टरवादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की तरफ़ एक जूता क्या उछल गया, इन मासूम देशभक्तों को जेल में डाल दिया? अलगाववादी ताक़तें हिंदुस्तान को गालियाँ देती रही, और कश्मीरी पंडितों को "भारत माता की जय" और "वन्दे मातरम्" कहने की क़ीमत चुकानी पड़ी!!
‘Kashmir should get Aazadi from bhookhe-nange Hindustan’ जैसे शब्द कहने वाली अरुंधती रॉय के लिए सुरक्षा और उसके इस नीच बयान का विरोध करने वाले देश के सपूतों को सज़ा??

आखिर कब तक अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर ऐसे लोग देश को गालियाँ देते रहेंगे?? अगर मैं अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का उपयोग करूँ, तो मेरे हिसाब से देश के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों का एक ही इलाज है.. गरम सलाइयों से इनकी ज़बानों में सुराख़ कर देने चाहिये..

दिल्ली में कल जो कुछ हुआ वाकई शर्म की बात है.. अलगाववादियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जो गंद मचाया है उसके बाद भी हमारी सरकार की आँख नहीं खुली?? सरकार को एक मिनट के लिए छोड़ भी दें तो मीडिया भी खामोश है, और अगर मीडिया को भी माफ़ कर दें तो हिंदुस्तान का आम आदमी भी सोया हुआ है..

होली, दीवाली, दशहरे.. CWG, Cricket.. आदित्य मसअले और अयोध्या मामले पर बढ़-चढ़ कर अपने विचार व्यक्त करने वाले bloggers और social network users भी शायद किसी और चीज़ में व्यस्त हैं..

खैर, इस गंदे अलगाववादी तूफ़ान के जवाब में आदरणीय श्री लाजपत राय जी की कविता आप सबकी नज़र -



और हाँ आपसे बस एक गुज़ारिश है - आप इस पोस्ट को 'like' करें या ना करें, इस पर 'comment' करें या ना करें, पर अगर मेरी और लाजपत राय जी की व्यथा जायज़ लगे तो इसे अपने 'pages' पर 'share' ज़रूर कीजियेगा!! हो सकता है कहीं कोई और सोयी आत्मा भी जाग जाये! और वैसे भी -
कविता लिखना खेल नहीं है, पूछो इन फनकारों से..
ये लोहे को काट रहे हैं, काग़ज़ की तलवारों से..!!

शुभकामनाओं सहित
शुभम

Friday, October 15, 2010

दुर्गाष्टमी पर, बस वैसे ही इक ख़याल..



छोटी-छोटी बच्चियों के नन्हे-नन्हे पैर धोने में जितना सुख और सुकून है, उतना शायद बड़ी-बड़ी बंदियों के साथ किसी भी चीज़ मैं नहीं!!
अष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!!

Friday, October 8, 2010

अब और तब

वो कहती है मुझे तब वाकई तुमसे मोहब्बत थी,
मैं कहता हूँ मुझे तो आज भी तुमसे मोहब्बत है..
मगर तब और अब के दरमियाँ
जो फ़ासला है
हम दोनों से मिलकर भी
समेटा जा नहीं सकता..
वो 'अब' तक आ नहीं सकती,
मैं 'तब' को पा नहीं सकता..!!


शायर - शायद क़तील शिफ़ाई साहिब

Saturday, October 2, 2010

मीड़िया - भेड़ की खाल में भेड़िया..!!

राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला आये तकरीबन 40 घंटे होने वाले हैं.. और दिल इस बात से वाकई खुश है कि मुल्क में अमन-ओ-चैन क़ायम है.


पूरे देश में कहीं मातम नहीं मना, तो कहीं मिठाई भी नहीं बँटी.. कहीं भड़काऊ भाषण नहीं हुए तो कहीं विजयी नारे भी नहीं लगे.. कहीं मायूसी नहीं छायी तो कहीं पटाखें भी नहीं बजे.. कुल मिला के दोनों पक्षों के नेताओं ने अभूतपूर्व संयम और समन्वय का परिचय दिया.. चाहें वो हाशिम अंसारी जी हों, रविशंकर प्रसाद जी या मोहन भागवत जी समेत अन्य 'तथाकथित सांप्रदायिक लोग'!!

लेकिन एक तबका जो हर नाज़ुक मौक़े पर ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यव्हार करता है इस बार भी लगा हुआ है.. क्योंकि इन्हें तो बस मसाला चाहिये... बे~स्वादी दाल तो गले से नीचे उतरती नहीं ना...!!

एक तरफ कोर्ट में इस ऐतिहासिक मुक़दमे की सुनवाई चल रही थी, दूसरी तरफ़ एक चैनल अपनी ही अदालत खोल के बैठा था... अपने ही तर्क-वितर्क.. कि मंदिर कब बना, मस्जिद कब टूटी.. मस्जिद टूटने का वीडिओ है, पर मंदिर टूटने का नहीं... शर्म आनी चाहिए इन लोगों को... TRP बढ़ाने के चक्कर में लोगों की भावनाओ को भड़का रहे हो?? देश में दंगे करना चाहते हो?

एक दूसरे चैनल पे हमारी बड़ी सायानी मैडम क़रीब एक हफ़्ते से चिल्ला रही थी "देश में अमन बनाये रखने के लिए हम सबको अदालत के फ़ैसले का सम्मान करना होगा", पर फ़ैसला आने के बाद पता नहीं उन्हें कौनसे दौरे पड़े कि रात को अदालत के फ़ैसले को चैलेंज करने लगी.. कहती हैं अदालत में फ़ैसले सबूतों के आधार पे होने चाहिये भावनाओ के आधार पर नहीं... तो एक हफ़्ते से क्यूँ भौंक रही थी कि जो भी फ़ैसला आये उसका सम्मान करना?? सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ऐसे चैनल्स के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही ज़रूर करनी चाहिये.. पर करेंगे नहीं, क्योंकि उनके भी तो 'वोट बैंक' का सवाल है!! आज हिंदुस्तान की युवा पीढ़ी धर्म-जाति-मज़हब को भुला कर एक साथ तरक्की कि राह पे चलना चाहती है तब भी देश का चौथा खम्भा सिर्फ़ अपनी दुकान चलाने के लिए देश को दांव पे लगाने से नहीं चूकता.. बहुत शर्म की बात है!!


मुझे तो डर है इनके इस गाँधी जैसे दोमुंहे बर्ताव से देश में फिर कहीं कोई गोड़से ना पैदा हो जाये..


22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर दिया।

न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-

"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"


TIME: What was the most difficult thing about killing Gandhi?
Gopal Godse
(brother of Nathu Ram Ji): The greatest hurdle before us was not that of giving up our lives or going to the gallows. It was that we would be condemned both by the government and by the public. Because the public had been kept in the dark about what harm Gandhi had done to the nation. How he had fooled them!!

Meenakshi Gangully, Time Delhi Correspondent.

TIME (FEBRUARY 14, 2000 VOL. 155 NO. 6)

लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्मदिन पर शुभ~कामनाओं सहित...

शुभम