से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Thursday, November 25, 2010

Afzal, Ajmal, Siyasi duldul..!!

जिस वक़्त आज मैं लिखने बैठा हूँ, दो साल पहले इसी वक़्त पाकिस्तान से एक जहाज रवाना हुआ था, जिसमें बैठे20-22 साल के सिर्फ़ 10 लड़कों ने 26 नवम्बर को मुंबई में मौत का तांडव किया!! सोच के देखो सवा सौ करोड़ का देश और साले 10 पिद्दी पहलवान पूरे 72 घंटे हमें अपने इशारों पे नचाते रहे..



और शर्म की बात ये है कि हमारी सरकारें ऐसे हादसों के बाद भी नहीं जागती. सारी दुनिया ने जिसे क़त्ल-ए-आम करते देखा, हमारी अदालतों और सरकारों को उसके खिलाफ़ सबूत जुटाने और उसे सज़ा सुनाने में डेढ़ साल लग गया.. जिसने बेरहमी से लोगों की लाशें बिछाई, उसी की हिफ़ाज़त के लिए हम लोगों के टैक्स के पैसों से ढाई-ढाई करोड़ की सुरंगे बनायीं हमारी सरकार ने..!! और वो ***** अभी भी हमारे देश की रोटियाँ तोड़ रहा है... क्यूँ? क्यूंकि उसे पता है यहाँ का कानून ढीला है, और सरकार निकम्मी..



अभी पट्ठा हाई कोर्ट में अपील करके बैठा है, फिर सुप्रीम कोर्ट जायेगा, उसके बाद अफ़ज़ल की तरह ये अजमल भी किसी 'प्रतिभाशाली पटिल' की गोदी में सर रख के छुप जाएगा... संसद और 26 नवम्बर जैसे हमले देश के लिए आम बात बन जायेंगे, मैं लिख-लिख के शहीदों को नमन करता रहूँगा और आप पढ़-पढ़ के सराहना..!!



भगवान करे ऐसा दुर्दिन आये उस से पहले इस देश का सोया ज़मीर जाग जाये. मुंबई हमले में मारे गए लोगों और शहीद हुये जवानों की आत्मा के लिए शान्ति की प्रार्थना करते हुये विनीत भाई का एक वीडियो आपकी नज़र..


Monday, November 15, 2010

Godse ke liye God se prarthna..!!

महात्मा गांधी के वध के आरोप में अदालत में चले मुक़दमे में नाथूराम गोडसे जी को फाँसी की सज़ा सुनाई गयी, पर गोडसे जी ने अदालत में अपने काम का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस मुक़दमे के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक किताब में लिखा-"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था. खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे. न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है."





TIME: What was the most difficult thing about killing Gandhi?
Gopal Godse(brother of Nathu Ram Ji): The greatest hurdle before us was not that of giving up our lives or going to the gallows. It was that we would be condemned both by the government and by the public. Because the public had been kept in the dark about what harm Gandhi had done to the nation. How he had fooled them!!
Meenakshi Gangully, Time Delhi Correspondent. TIME (FEBRUARY 14, 2000 VOL. 155 NO. 6)

22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर हमला किया, उससे पहले माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने युद्ध के चलते यह राशि देने को टालने का फैसला लिया पर गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन कर दिया. फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी. ऐसे हालात में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त ने गान्धी का वध कर दिया.

1949 में आज ही के दिन अम्बाला जेल में नाथूराम गोडसे जी को फाँसी पे लटकाया गया था. गोडसे जी की आत्मा के लिए शान्ति की कामना करते हुए....
शुभम

Thursday, November 11, 2010

Khoobsurat Mod











बोझ

रुई की गठरी लेके चलना
तब तक ही अच्छा लगता है
जब तक बारिश ना हो.
बारिश में वो बोझ बन जाती है...
शायद, उतार देने में ही समझदारी है!!














सवाल

वो जब भी मुझसे मिलती थी
हर बार मासूमियत से पूछा करती थी के
"तुम मेरे हो ना?"
और मैं..
हर बार उसके चेहरे को छू कर क़सम खाया करता था..
पर काश,
एक बार मैंने भी उससे पूछ लिया होता
कि "तुम मेरी हो ना?"








बेवफ़ाई

उसने मेरा हाथ थाम के कहा
"इतने गरम हाथ..!!वफ़ा की निशानी होते हैं"
और मुझे अब याद आया है..
कि..
उस वक़्त..
उसके हाथ कितने ठन्डे थे...!!





उदासी का सबब

तू अनजान ही बेहतर था
के मेरे जीने मरने से तुझे कोई फरक नहीं पड़ता था..
वैसे फरक तो तुझे
मेरे जीने मरने से अब भी नहीं पड़ता,
पर अब यही बात रोज़ मेरी जान ले लेती है...!!
-हर्ष भाई (हर्ष छाया)





ख़ूबसूरत मोड़

ता`अर्रुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर,
ता`अल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा..
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा...!!
- साहिर लुधयानवी साहब

Tuesday, November 2, 2010

52 पत्तों की दिवाली

कल रात पुराने दोस्तों के साथ ताश की महफ़िल जमी थी, कि उसकी 5-6 साल की भतीजी कमरे में आकर मासूमियत से पूछती है "दिवाली पे ताश क्यूँ खेलते हैं.. ताश खेलना तो बुरी बात है ना..??"
उसके इस सवाल को उस वक़्त तो हम टाल गये, पर घर वापस आते वक़्त ज़हन में कुछ ख़याल चलते रहे..

होली, दिवाली, दशहरा.. हमारा कोई भी त्यौहार बुराई का प्रतीक या समर्थक नहीं है.. ये तो हम ही लोगों ने इन्हें बुरा रूप दे दिया है.. अगर सही नज़रिये और सकारात्मक सोच से देखें तो हर रीत-हर रिवाज़ के बहुत गहरे मायने हैं..!!


आओ अगले 52 हफ़्तों तक, ताश के 52 पत्तों की तरह हम भी एकजुट होकर रहें. और एक दूसरे की ज़िंदगियाँ ख़ुशियों से रोशन कर दें.

ताश खेलने के असल मायने जब तक जान पाता हूँ, तब तक इस ख़याल के साथ सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें..!!
शुभम