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Tuesday, November 2, 2010

52 पत्तों की दिवाली

कल रात पुराने दोस्तों के साथ ताश की महफ़िल जमी थी, कि उसकी 5-6 साल की भतीजी कमरे में आकर मासूमियत से पूछती है "दिवाली पे ताश क्यूँ खेलते हैं.. ताश खेलना तो बुरी बात है ना..??"
उसके इस सवाल को उस वक़्त तो हम टाल गये, पर घर वापस आते वक़्त ज़हन में कुछ ख़याल चलते रहे..

होली, दिवाली, दशहरा.. हमारा कोई भी त्यौहार बुराई का प्रतीक या समर्थक नहीं है.. ये तो हम ही लोगों ने इन्हें बुरा रूप दे दिया है.. अगर सही नज़रिये और सकारात्मक सोच से देखें तो हर रीत-हर रिवाज़ के बहुत गहरे मायने हैं..!!


आओ अगले 52 हफ़्तों तक, ताश के 52 पत्तों की तरह हम भी एकजुट होकर रहें. और एक दूसरे की ज़िंदगियाँ ख़ुशियों से रोशन कर दें.

ताश खेलने के असल मायने जब तक जान पाता हूँ, तब तक इस ख़याल के साथ सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें..!!
शुभम


2 comments:

  1. दीपावली पर ताश खेलने की कोई परम्‍परा नहीं है, यह पता नहीं किसने ईजाद की है। आपको दीपावली की शुभकामनाएं

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  2. jee haan, aisi koi parampara nahi hai.. par jo bhi hai usme se 'positive side' ko saath leke hee aage badhna chahiye.. :-)

    bahut shubhkamnayein!!

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