से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Tuesday, March 8, 2011

Women's Day & Sahir Sahib

8 मार्च, 2011 - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और मेरे पसंदीदा शायर जनाब साहिर लुधयानवी जी का 90वां जन्मदिन! कलम के इस जादूगर की हर एक लिखावट का मैं शुरू से क़ायल रहा हूँ.. अगर इनका सौवां हिस्सा भी मेरी लिखावट में आ जाए तो समझूंगा ये जनम सफ़ल हो गया.. उनके जन्म दिन पर ब्लॉग पे लिखते हुए बहुत मुश्किल होती तय करने में की उनकी कौनसी नज़्म यहाँ पेश करूँ, पर महिला दिवस के पावन अवसर पर उनकी एक नज़्म जो हर बार आँखों में नमी ले आती है, आप सबकी नज़र -

औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया..
जब जी चाहा मसला-कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया..

तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में,
नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में,
ये वो बेईज्ज़त चीज़ है जो, बँट जाती है इज्ज़तदारों में..

मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां, औरत के लिए रोना भी खता,
मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता,
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़, औरत के लिए जीना भी सज़ा..

जिन होंटों ने इनको प्यार किया, उन होंटों का व्यापार किया,
जिस कोख में इनका जिस्म ढला, उस कोख का कारोबार किया,
जिस तन से उगे कोपल बनकर, उस तन को ज़लील-ए-खार किया..

मर्दों ने बनायी जो रस्में, उनको हक़ का फ़रमान कहा,
औरत के ज़िंदा जलने को क़ुरबानी और बलिदान कहा,
क़िस्मत के बदले रोटी दी, और उसको भी एहसान कहा..

संसार की हर इक बेशर्मी ग़ुरबत की गोदी में पलती है,
चकलों ही में आके रूकती हैं, फ़ाकों से जो राह निकलती है,
मर्दों की हवस है जो अक्सर औरत के पाप में ढलती है..

औरत संसार की किस्मत है, फिर भी तकदीर के हेटी है
अवतार पयम्बर जनती है, फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदकिस्मत माँ है जो, बेटों की सेज पे लेटी है..!!


इसे देश की विडंबना कहूँ या समाज के मुँह पे तमाचा के 55 साल पहले लिखे ये अलफ़ाज़ आज के दौर में भी एकदम सच साबित होते हैं! जाने-अनजाने कभी मुझसे किसी नारी का अपमान या कोई बदसलूकी हुयी हो तो दिल से क्षमा याचना करते हुए, शुभकामनाओं सहित -
शुभम