से मेरे ब्लॉग पे आये, मुझे अच्छा लगा.

Sunday, April 17, 2011

Adult Kavi Sammelan

रामलीला मैदान कवि नगर, ग़ाज़ियाबाद में हर साल होने वाले 'अट्टहास' कवि सम्मलेन से वापस आया हूँ. 18 साल हो गए 'अट्टहास' को होते हुए और जो नज़ारा आज देखा वो दुनिया के किसी भी कवि सम्मलेन में शायद ही कभी दिखा हो! आज के 18वें 'अट्टहास' ने वाकई ये साबित कर दिया कि ये कवि सम्मलेन आज 18 साल का बालिग़ समझदार हो गया है! कवि रमेश शर्मा जी कि कविता "सब अभी से बदल गया माँ" सुनके मैदान में बैठे हज़ारों लोगों की आँखों में पानी भर आया. और जैसे ही ये मार्मिक कविता ख़त्म हुयी इन्द्रदेव भी ख़ुद पे क़ाबू नहीं रख पाए. रात के 2 बजे अचानक भरी बारिश होने लगी, पर सलाम है ग़ाज़ियाबाद के कविता प्रेमियों को जो भरी बरसात में भीगने या बीमार होने की चिंता किये बगैर कवि सम्मलेन में डटे रहे. कविता के ऐसे प्रेमी विरले ही देखने को मिलते हैं.

राखी सावंत की एक छींक या मल्लिका शेरावत की एक हिचकी को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दिखाने वाले मीड़िया से एक सवाल है कि - आप दम तोड़ते साहित्य के दौर में कवियों और कविता प्रेमियों का ये जज़्बा क्यूँ नहीं दिखाते हो? क्यूँ कोई सार्थक ख़बर दिखा कर साहित्य के तरफ़ देशवासियों का ध्यान नहीं खींचते हो?

मेरे पास फ़िलहाल तस्वीरें और विडीयोज़ नहीं हैं कि किस तरह लोगों ने भरी बारिश में कविताओं का मज़ा लूटा. तालियों कि गडगडाहट से पूरा रामलीला मैदान गूँज उठा. मुझे फ़क्र है कि मैं उस ग़ाज़ियाबाद का रहने वाला हूँ जहाँ सिर्फ़ आदरणीय कृष्ण मित्र जी और डॉ कुंवर बेचैन साहिब जैसे बड़े कवि ही नहीं, बल्कि भरी बरसात में उनको सुनने वाले देश के सच्चे कविता प्रेमी रहते हैं...

एक लड़की जिसकी सगाई हो गयी है और शादी में कुछ महीने बचे हैं... घर के लोगों के बदले बर्ताव को लेकर वो क्या सोचती है-क्या कहती है, इस सुन्दर सोच पे लिखी रमेश भाई की वो कविता जो मेरी आँखों में भी पानी ले आयी थी, आप सबकी नज़र.....




Tuesday, March 8, 2011

Women's Day & Sahir Sahib

8 मार्च, 2011 - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और मेरे पसंदीदा शायर जनाब साहिर लुधयानवी जी का 90वां जन्मदिन! कलम के इस जादूगर की हर एक लिखावट का मैं शुरू से क़ायल रहा हूँ.. अगर इनका सौवां हिस्सा भी मेरी लिखावट में आ जाए तो समझूंगा ये जनम सफ़ल हो गया.. उनके जन्म दिन पर ब्लॉग पे लिखते हुए बहुत मुश्किल होती तय करने में की उनकी कौनसी नज़्म यहाँ पेश करूँ, पर महिला दिवस के पावन अवसर पर उनकी एक नज़्म जो हर बार आँखों में नमी ले आती है, आप सबकी नज़र -

औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया..
जब जी चाहा मसला-कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया..

तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में,
नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में,
ये वो बेईज्ज़त चीज़ है जो, बँट जाती है इज्ज़तदारों में..

मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां, औरत के लिए रोना भी खता,
मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता,
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़, औरत के लिए जीना भी सज़ा..

जिन होंटों ने इनको प्यार किया, उन होंटों का व्यापार किया,
जिस कोख में इनका जिस्म ढला, उस कोख का कारोबार किया,
जिस तन से उगे कोपल बनकर, उस तन को ज़लील-ए-खार किया..

मर्दों ने बनायी जो रस्में, उनको हक़ का फ़रमान कहा,
औरत के ज़िंदा जलने को क़ुरबानी और बलिदान कहा,
क़िस्मत के बदले रोटी दी, और उसको भी एहसान कहा..

संसार की हर इक बेशर्मी ग़ुरबत की गोदी में पलती है,
चकलों ही में आके रूकती हैं, फ़ाकों से जो राह निकलती है,
मर्दों की हवस है जो अक्सर औरत के पाप में ढलती है..

औरत संसार की किस्मत है, फिर भी तकदीर के हेटी है
अवतार पयम्बर जनती है, फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदकिस्मत माँ है जो, बेटों की सेज पे लेटी है..!!


इसे देश की विडंबना कहूँ या समाज के मुँह पे तमाचा के 55 साल पहले लिखे ये अलफ़ाज़ आज के दौर में भी एकदम सच साबित होते हैं! जाने-अनजाने कभी मुझसे किसी नारी का अपमान या कोई बदसलूकी हुयी हो तो दिल से क्षमा याचना करते हुए, शुभकामनाओं सहित -
शुभम

Friday, January 21, 2011

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा"

सुभाष चन्द्र बोस जी की जयंती पर उन्हें, और उनका साथ देने वाले आज़ादी के सभी दीवानों को शत शत नमन! इस पावन अवसर पर कवि गोपाल प्रसाद 'व्यास' जी की कविता से कुछ पंक्तियाँ..


बोले सुभाष इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है,

लो ये काग़ज़ है कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरने वाले जन को सर्वस्व समर्पण करना है,

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है..

ये साधारण पत्र नहीं आज़ादी का परवाना है,

इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिरना है!

साहस से भरे युवक उस दिन देखा बढ़ते ही जाते थे,

चाकू छुरियों कटारियों से अपना रक्त गिराते थे..

फिर उसी रक्त की स्याही में वो अपनी कलम डुबाते थे,

आज़ादी के परवाने ऐसे हस्ताक्षर करते जाते थे..!!