वो कहती है मुझे तब वाकई तुमसे मोहब्बत थी,
मैं कहता हूँ मुझे तो आज भी तुमसे मोहब्बत है..
मगर तब और अब के दरमियाँ
जो फ़ासला है
हम दोनों से मिलकर भी
समेटा जा नहीं सकता..
वो 'अब' तक आ नहीं सकती,
मैं 'तब' को पा नहीं सकता..!!
शायर - शायद क़तील शिफ़ाई साहिब
आभार पढ़वाने का.
ReplyDeleteअब और तब में फँस कर समय बर्बाद नही करो .. प्रेम को पाना ही जीवन है ...
ReplyDelete@udan Tashtari saahib - आभार पढ़ने का.. :)
ReplyDelete@दिगम्बर नासवा जी - प्रेम को पाना क्या सर, प्रेम को समझने में ही एक जीवन निकल जाएगा.. :P
sahi hai jab samajh hi nahi ayega ki prem kya hai to paane ka yatn kaise karen
ReplyDeleteyatn se shayad prem paya bhi nahi ja sakta Shivank ji, ye swabhavik aur sehaj roop se zindagi mein ghul jata hai bas.. :)
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