हिंदुस्तान बचाना है तो आडवाणी को फाँसी चढ़ा दो...दोस्तों ये मैं नहीं, हमारे भारतवर्ष का तथाकथित बुद्धिजीवी और स्व-घोषित सिक्युलर (SICKular) तबका बोल रहा है. बोल भी क्या रहा है, यूँ कहो गला फाड़-फाड़ के चिल्ला रहा है. सुबह से लेकर रात तक, किसी भी वक़्त, कोई भी न्यूज़ चैनल लगा लो.. ऐसा लगता है भारत देश में अगर आज कोई समस्या है तो उसका नाम है 'लाल कृष्ण आडवाणी'
आडवाणी जी ने कल गांधीनगर से अपना चुनावी पर्चा 12 बजकर 39 मिनट पर क्या भरा कि एक न्यूज़ चैनल के पेट में पूरे दिन यही दर्द उठता रहा कि उन्होंने 'शुभ मुहूर्त' के हिसाब से पर्चा क्यूँ भरा...पर्चा भरने से पहले पूजा क्यूँ की...???
वैसे मैं ब्लॉग पे लिखते वक़्त किसी व्यक्ति या संस्था का नाम लेने से परहेज़ करता हूँ, लेकिन आज नहीं!!
NDTV India के प्रोग्राम 'Election Point' में अभिज्ञान प्रकाश ने कल की बहस का मुद्दा ही ये रखा कि आडवाणी ने 12.39 पर पर्चा क्यूँ भरा?? और मज़े कि बात इस मुद्दे पे राय देने के लिए स्पेशल गेस्ट के तौर पे बुलाया महेश भट्ट को, जिसने अपने मानसिक दीवालियेपन का सबूत देने में कोई कसार नहीं छोड़ी..!!
महेश भट्ट बोले कि हम 21वीं सदी में जा रहे हैं, हमें इन पुरानी परम्पराओं को तोड़ना होगा...ये पूजा-हवन-ज्योतिष-मुहूर्त वगैरह-वगैरह इन सबसे बाहर निकलना होगा, तभी बनेगा नया भारत. अब कोई उस पागल से पूछे कि तू अपनी फिल्म से पहले मुहूर्त क्यूँ करता है? पहले खुद को और अपनी industry को तो 21वीं सदी में ले जा, बंद करा दे बॉलीवुड में मुहूर्त का चलन. खैर इस पागल पे अपना और आपका वक़्त ज़्यादा बर्बाद नहीं करूँगा...फ़टाफ़ट आता हूँ दूसरे पागल पर. ना-ना माफ़ कीजिये पागल नहीं, ज्ञानी पर...उसके तो नाम में ही इतना ज्ञान है कि बस...!!
मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि आडवाणी जी ने अभिज्ञान की कौनसी भैंस खोल दी कि वो सारे दिन इन्ही के पीछे पड़ा रहता है!! सोनिया और राहुल ने भी तो पर्चा भरने से पहले पूजा की थी...
अरे भाई ये हमारी संस्कृति है, हर शुभ काम से पहले भगवन का नाम लेना... अब अभिज्ञान भैया बुरा मत मानना तुम्हारी शादी होगी तो मम्मी-पापा को बोल देना कि मुहूर्त-वुहुर्रत बेकार की बातें हैं, या जब खुद पापा बनोगे तो बच्चे के नामकरण या बाकी संस्कार मत करना...क्योंकि हमें इंडिया को 21वीं सदी में लेके जाना है ना...
अगर कहीं ये लेख अभिज्ञान भाई कि नज़र तक आया है तो इन कड़वे शब्दों के लिए माफ़ी चाहूँगा, लेकिन मेरे दोस्त तुमने इतना ज़हर पिलाया है कि ज़ुबां ऐसी ही हो गयी है अब...!!
लेकिन ये हाल सिर्फ NDTV या अभिज्ञान का नहीं है, एक और चैनल भी आडवाणी जी को लपेटने में लगा था. वहाँ मुद्दा था कि आडवाणी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को ये क्यूँ कहा कि "ओवर कांफिडेंस से बचना"
अब कोई इनसे पूछे कि यार हर छोटी-बड़ी ज़ंग, हर मैच या हर छोटे-बड़े इम्तिहान से पहले घर के बड़े-बुजुर्ग, टीम का कप्तान या सेना का जनरल यही कहता है कि 'ओवर कांफिडेंस में हार मत जाना' तो अगर आडवाणी जी ने अपने कार्यकर्ताओं को यह बोल दिया तो इसमें क्या बवाल हो गया? वैसे भी ये उनकी पार्टी का अन्दुरुनी मामला है... ये तो किसी भी एंगल से बहस का मुद्दा नहीं है, फिर इस पर घंटों चर्चा क्यूँ...??
खैर इसे भी माफ़ किया, अब ज़रा थोड़ा और पीछे चलते हैं.. तारीख़ 29 मार्च, रविवार का दिन..आडवाणी जी की प्रेस कांफ्रेंस!! यक़ीन मानिए पौने घंटे की वो प्रेस कांफ्रेंस देख के पहली बार हिंदुस्तान के लोकतंत्र में आस्था जागी थी. और शुक्र है कि मैंने वो पूरी कांफ्रेंस लाइव देख ली थी, वरना इन मीडिया वालों की बदतमीज़ी भी समझ नहीं आती...!!
आडवाणी जी ने वो प्रेस कांफ्रेस बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे के लिये बुलवाई थी मुद्दा था देश का 25 लाख करोड़ रुपया जो कि काला धन बनकर स्विस बैंको में चला गया है. कुछ समय पहले जर्मन गर्वनमेंट के हाथ उन लोगों की जानकारी लगी जिनका पैसा स्विस बैंकों में जमा है, उन्हें यह भी पता लगा कि किसका कितना पैसा है वहाँ, तो उन्होंने सारी दुनिया में ऐलान किया कि जो-जो देश हमसे पूछेगा, हम उन्हें बतायेंगे कि वहां पर किस आदमी का कितना-कितना धन इन बैंकों में है.
जिस समय यह खबर आई उस समय आडवाणी जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर जर्मनी से उन हिन्दुस्तानियों के नाम पूछने का सुझाव दिया जिनका पैसा वहाँ जमा है, बदले में सरकार की तरफ से टालू जवाब आ गया. इसलिए इस बार यह बात पब्लिक फोरम पर आडवाणी जी ने कही, कि पिछले पत्र की तरह यह भी दबा न दी जाये.
पूरी प्रेस कांफ्रेंस में आडवाणी ने बताया कि किस तरह इस पैसे का इस्तेमाल देश की बेहतरी के लिये होना चाहिये, और उन्होंने इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया, और यह भी कहा कि वो जरूर पूछेंगे जर्मनी से कि बताओ उन लोगों के नाम जिन्होंने देश को चूना लगा लगा कर पैसा स्विस बैंकों में भेज दिया.
एक पत्रकार ने उनसे कहा कि अगर उन लोगों के नाम पता चल गये जिनका इतना पैसा जमा है तो भूचाल आ जायेगा. तो आडवाणी जी ने उससे कहा कि मैं चाहता हूँ कि ऐसा हो, उन लोगों के नाम खुलें जिससे देश का पैसा देश में वापस आ पाये.
लगभग 45 मिनिट चली यह प्रेस कांफ्रेस, और बातें सारी यहीं हुईं, लेकिन अंत होते-होते एक सयाने पत्रकार ने पूछ लिया कि वरुण गांधी पर क्या खयाल हैं, तो आडवाणी ने वही कहा जो वह कहते आ रहे हैं, कि वरुण ने कहा है कि बयान मेरा नहीं है.
और ज़रा देखो इन महान पत्रकारों की जमात ने 45 मिनिट की कांफ्रेंस में से क्या निष्कर्ष निकाला...??
'आडवाणी ने वरुण का बचाव किया'
- इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने कहा कि देश का 285 करोड़ रुपया काला धन बन चुका है
- इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने मनमोहन से उन लोगों का नाम पूछने को कहा जिनका पैसा है यह
- इन्होंने यह नहीं सुना कि इस पैसे को देश में वापस लाना है
- इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने कहा कि भूचाल आये तो भी उन लोगों के नाम जगजाहिर होने चाहिये
- इन्होंने सुना बस वरुण, देश को यह भूल गये
दरअसल इन्होंने बस वही सुना जिसे सुनने की परमिशन इन्हें इनके आकाओं ने दी. पता नहीं हमारे मीडिया वाले किसके नाम के घुंघरू पैरों में बाँध के एक बे-गैरत तवायफ़ की तरह नाच रहे हैं..
तुफैल भाई की चार पंक्तियाँ इन मीडिया वालों के नाम -
सियासत का नशा सिम्तों तक जादू तोड़ देती है
हवा उड़ते हुए पंछी के बाजू तोड़ देती है
सियासी भेड़ियों थोड़ी-बहुत गैरत ज़रूरी है
तवायफ़ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है...
तवायफ़ तक किसी मौके पे घुंघरू तोड़ देती है...!!
साभार विश्व भाई...'वो चुप नहीं'
baht sundar. ek karara thappad mara hai aapne in patrakarita ke naam pe lage kalankon pe balki ye kahiye ki joota uchhala hai.
ReplyDeletebahut badhiya mudda uthaya hai aapne..
ReplyDeleteदेश का दर्द हम ऐसे ही बाँटकर हल्का कर लेते हैं। वरना मीडिया ने तो घाव देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सत्य दिखाने के लिए मीडिया का जन्म हुआ था लेकिन इन्होंने शपथ ली है कि हम केवल झूठ और फरेब का ही सहारा लेंगे, जहाँ भी सत्य होगा उसे नजरअंदाज करेंगे। अब शायद ब्लाग पर ही मीडिया पर कुछ लिखा जा सकता है।
ReplyDeleteये चैनेल वाले भी खूब हैं। चोर के मौसेरे भाई को ही गवाही देने के लिये बुला लेते हैं।
ReplyDeletevery well said...thode samay pehle yeh bhi savaal uthaya tha ek channel ne ki saare accidents BMW vaale hi kyun karte hain...dard iss baat ka zyaada tha ki logon ke paas BMW kyun hai...unhone uss accident ko chhodkar har baat ki ki kaise raees log raat ko club jaate hain...kya kya karte hain...but that particular accident...asal mudda hamesha kho jaata hai...well put Shubham...
ReplyDeleteआप इन चैनल वालों को इतनी गम्भीरता से लेते है? दो कौड़ी के बुद्धीजीवि है.
ReplyDeleteNDTV तो खैर मुस्लिम चैनल है ही, बाकी के टीवी चैनल और पत्रकार भी (90%) हिन्दुओं के विरोध में ही लगे रहते हैं… सेकुलरिज़्म के तलवे चाटते-चाटते इनकी अन्तरात्मा मर चुकी है… उपदेश हमेशा हिन्दुओं को ही दिया जायेगा… इसीलिये इन चैनलों और पत्रकारों से जनता का मोहभंग होता जा रहा है… केरल के तालिबानीकरण पर जो लेख (भाग-1) मैंने लिखा है उसमें भी इसी को रेखांकित किया है… जैसे ही एसी स्टूडियो में पहुँचे, कोट-टाई लगाया, कि इन लोगों को सेकुलरिज़्म का बु्खार चढ़ जाता है… खबरें और हेडलाइन्स वही बनाई जाती हैं जिनमें हिन्दुओं को गरियाने का मौका मिले… पता नहीं इनके मालिकों को किस-किस मिशनरी और गैंगस्टर से चन्दा मिलता है… बहरहाल आप लगे रहिये… खूब लिखा है आपने… इन लोगों को इसी तरह नंगा करना जरूरी है…
ReplyDeletejordaar !
ReplyDeletesirji kya baat hai...sach yahi sab chize mere bhi zahan mein aati rahti thi ki hum asal muddon ko chhod kar...kyo chhoti-chhoti bhadkau khabron ke peeche pade rahte hai...khabaron ka vyavsayeekaran hai..pahele ye kahte the ki jo dikhta hai woh bikta hai, iss case mein lagta hai ulta ho gaya...jo bikta hai wohi dikhta hai..musalman ko dikhao hindu qaafir hai aur hindu ko bolo musalman badmash hai...ye ab sirf rajniti nahi hai, isse kahte hai commercialisation!!! and for dis we cant blame politicians only...we r also somehow responsible for this...
ReplyDeleteहा हा हा ! सोनिया जी भी तो नारियल वैगरह फोडी थी रायबरेली में | उसका मुद्दा नहीं उठा? प्रिया दत्त भी मस्जिद में गयी थी :) मीडिया पर से सब का विश्वाश उठ गया है | मीडिया का असली रूप सब समझ में आने लगा है | इतना तो सबको मालूम हो गया है की सेकुलरिस्म शब्द अब किसी को उतना आकर्षित नहीं करता है | उल्टा सेकुलरिस्म पर बोलने वाले नफरती ज्यादा दीखते हैं | और ये जितने पत्रकार इन विषयों पर बोलते हैं वो एक दम बौने नजर आते हैं | इनको देख कर ऐसा लगता है मनो हर जगह के रिजेक्ट माल वही पहुच गए हो | एक तो नौकरी की मज़बूरी और दुशरी उनकी भाषा और शब्द इनको इतना छोटा बना देता है की कहिये मत | वैसे तो छोटे लेकिन ब्लॉग जगत में बहुत बड़े पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध पत्रकार का लेख पढ़ा सेकुलरिस्म और नीतिश पर | उनको देख कर यही लगता है की दो कौडी का पत्रकार मुख्यमंत्री को ऐसे बोलता है मानो नीतिश कोई अर्दली या चपरासी हों.
ReplyDeleteक्या बात है शुभम बंधू | ट्रेलर कुछ और फिल्म कुछ और दिखाई| चलो फिर भी अच्छा है|
ReplyDeleteअरे भाई, इन सिक्यूलरिस्टों का धंधा तो उन्हीं स्विज़ बैंक के खातेदारों से चलता है। यह सही है कि तवायफ को कभी शरम आ जाए, पर हाय रे भारत के नेता....शर्म तुम को मगर नहीं आती, आती भी है तो बिना घुंघरू बजाए शरमा के लौट जाती है:)
ReplyDeleteIse kehte hain USP, Unique Selling Proposition... advertising me bhi to hum yeh hi karte hain, hai na? Ek mudda pakad lete hain or usko le ke naachte rehte hain, naachte rehte hain... Yeh channel wale bhi wohi kar rahe hain...aakhir maal bechnaa hai bhai... zaroorat padi to apna kuch bhi bech denge yeh be-gairat insaan, objectivity or zameer to bahut choti cheez hai :)
ReplyDeleteशुभम भाई इस करारे लेख के लिए आपको मुबारकबाद. हमारे देश को जरनैल सिंह जैसे जूतिया पत्रकार चाहिए, मगर अफ़सोस सारे _तिया पत्रकार भरे हुए हैं!!! जो अपना ज़मीर बेच चुके हैं, अपनी आत्मा कहीं गिरवी रख आये हैं. एक बार फिर आपको बहुत बधाई, ऐसे ही लिखते रहे..
ReplyDeleteमुझे उर्दु नहीं आती और वे शब्द भूल रही हूँ जो बहुत से लोग अपना संवाद शुरू करते हुए बोलते हैं, जिसका अर्थ होता है कि भगवान ने चाहा तो, और यह कि भगवान सबसे बड़ा है जैसा कुछ। वे अपने हर दूसरे तीसरे वाक्य में इनका उपयोग करते हैं। क्रिकेट से लेकर सिनेमा और किसी भी विषय पर बात करते हुए। परन्तु उसे सुनकर तो किसी को कष्ट नहीं होता। सोचिए यदि कोई भाजपा वाला या हिन्दु नाम वाला जय श्री कृष्ण या जय सियाराम या गीता या वेदों का कोई वाक्य बोल दे तो उसको कोई छोड़ देगा? मैं धर्म नहीं मानती, या शायद बहुत कम मानती हूँ, किन्तु किसी एक धर्म या धर्म के अनुयायियों के पीछे लट्ठ लेकर पड़ने वाले भी मुझे असह्य लगते हैं
ReplyDeleteऔर हाँ, मैंने हिन्दु परिवार में जन्म लिया इसलिए धर्म नहीं मानती कहने का साहस कर सकती हूँ। यदि किसी अन्य धर्म में जन्म लिया होता तो ना तो ऐसे संस्कार मुझमें हो पाते और ना ही अपने मानने न मानने का निर्णय करने का अधिकार मेरा है, यह सोच हो पाती। यही एक ऐसा धर्म है जिसमें मुझ जैसों के लिए सदा से स्थान बना रहा है। यदि यही इस धर्म की कमजोरी मानी जाए तो इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है?
घुघूती बासूती
@Ravi
ReplyDeleteMy dear friend do you know Vishva from Chennai....??
newas thanks for ur feedback..God bless...
शुभमजी..बहुत ही अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़कर...इन सेकुलरिस्टों की खूब बखिया उधेडी़ है...और खासकर एनडीटीवी के कुकृत्यों से तो मीडिया शब्द से घिन आ जाती है
ReplyDeleteमैंने भी हाल ही में एनडीटीवी पर एक पोस्ट लिखी थी...लिखते रहें और इन सेकुलरिस्टों, मुस्लिमपरस्तों को बेनकाब करते रहें
आप सभी का दिल से शुक्रिया कि आपने अपना क़ीमती वक़्त पहले आर्टिकल पढने, और फिर कमेन्ट करने में लगाया.
ReplyDeleteपर एक विनती करूँगा, किसी भी धर्म-मज़हब के लिए अपशब्द ना कहें... यह भारत देश हम सबका है. ये लेख सिर्फ मीडिया की बदतमीज़ी दिखाने के लिए लिखा है. इन्ही मीडिया वालों के कारण तो भाई-भाई एक दूसरे दूर हो रहे हैं... अगर हम 'मुस्लिम-परस्त', 'गैर-हिन्दू आदि-आदि...' शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो ये इस SICKular मीडिया की जीत होगी...!!
जय हिंद..
Very well said, infact NDTV is the mother of all media evils.
ReplyDeleteMr. Shubham, Vishwa is my best friend.
ReplyDeleteAnd at present he in not in chennai, he is in Mumbai.
@Ravi
ReplyDeleteThanks buddy :)
असली बात तो यह है कि किसी दल के पास कोई मुद्रदा ही नहीं है जो वायदे किये जा रहे हैं वे सारे के सारे चुनावी स्टंट हैं जो दिखाया जा रहा है जो सुनाया जा रहा है वह लोगों को भरमाने के लिए है और असली मुद्रदों से ध्यान हटाने के लिए है।
ReplyDeletekaraara lekh..badhayi ho...
ReplyDeletebahut sahi likha hai,vakai kabile tarif hai aapki ye post..
ReplyDeleteYar even Obama is a regular Church goer, but his media never objects then why r Indian channels after Advani?
ReplyDeleteआपका ज्ञान शब्द पढ़ कर एक बार लगा कि आप हमारे पुराने हिंदी ब्लॉगर ज्ञानदत्त जी को कुछ कह रहे हैं, पर ईश्वर की कृपा रही कि वे बच गए. :)
ReplyDeleteआज अजहरुद्दीन भी नमाज पढने गया था. अरे वही क्रिकेट का चोट्टा, पैसा खोर. अब किसी चैनेल ने इसे बखेडा नहीं बनाया बल्कि रिकार्डिंग थी कि अजहर खुद को एक साधारण आदमी साबित कर रहे हैं. अरे साधारण आदमी को आज के दिन ही (जाहिर सी बात है कि चुनाव जो जीतना है) नमाज की याद क्यों आई. सारी ज़िन्दगी क्या करता रहा ?
@Kiya lo : "पर ईश्वर की कृपा रही कि वे बच गए"
ReplyDelete>>>>हा हा हा हा हा....बहुत सुन्दर व्यंग था. मैं नहीं बच पाया... ;-)
रही बात अज़हर के नमाज़ पढ़ने से आम आदमी बन ने की तो मैं फिर से यही कहूँगा कि ये कुछ गैर-ज़िम्मेदार मीडिया वाले ही हैं जो हिन्दू-मुस्लिम को दूर करने में लगे हैं... वरना ये बातें कभी कोई मायने नहीं रखती कि पूजा या इबादत के लिए कौन क्या तरीका अपनाता है. बेहतर होता अगर चैनल्स वाले आडवानी जी के हवन और अज़हर की नमाज़ की बजाय देश में किसी सार्थक मुद्दे पे कोई बहस छेड़ते...
पत्रकारिता के दिवालियेपन पर संजीदा न हों भाई,
ReplyDeleteये पत्रकार बुद्धिजीवी नहीं अपितु दुकान में सामन तौलने वाले चाकर हैं,
इन्हें पत्रकारिता नहीं अपितु चैनल को बेचना है.
बधाई
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ReplyDeleteI remember last year during Gujarat State Assembly Election when whole media [especially English media] was against Mr. Narendra Modi. And I don't think I need to mention what was result of the election. Gujarat people again elected him with historical margin. And in return of it Mr. Narendra Modi ensured INR12 Lac Cror MOU Signed by different industries in Vibrant Gujarat Summit in just 3 days. I personally wish if the same history repeats at National Assembly election.
ReplyDeleteEkdum sahi kaha hai...
ReplyDelete...100 fisadi sehmant hoon !!
bahut acha likah hai...
ReplyDeleteशाबाश! खुशी होती है कि कुछ बच्चे हैं देश में जो हमारी परंपरा, स्वाभिमान, सभ्यता और संस्कृति को बचाए रख सकते हैं। बाकी सब तो अंग्रेज़ों और उनकी 'फूट डालो राज करो' नीति के गुलाम ही हैं।
ReplyDelete@ पूर्णिमा वर्मन जी
ReplyDeleteनमस्ते मैडम,
सबसे पहले आपका दिल से धन्यवाद कि आपने मेरा लेख पढ़ा, और पढने के बाद अपना आशीर्वाद दिया...!! मैडम ये बच्चा तो बहुत छोटा है, अभी देश के लिए बहुत कुछ करना है...!! असली सलाम है उन बच्चों को जिनकी बदौलत हमें आज़ाद हिंदुस्तान मिला. चाहे वो 16 साल के खुदी राम बोस जी हों या 20-22 साल के भगत सिंह जी और उनके साथी... इस देश कि विडंबना है कि हम इन महान आत्माओं का गुणगान करने पर 'extremist' कहलाते हैं... :-(
खैर इन सब बातों से मेरे हौसले कम नहीं होंगे. सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए हम नौजवानों को हमेशा आपके आशीर्वाद और मागदर्शन कि ज़रुरत रहेगी. एक बार फिर दिल से शुक्रिया....!!
अबीर जी, दर्पण जी, जय भाई, रजनीश भाई....सबका दिल से शुक्रिया...
ReplyDeletebilkul sahi likha and much thanks for this blog.
ReplyDeletemedia wale ya toh congress ke paise pe pal rahe hai ya fir muslim fookers chala rahe hai pata nahi inko bjp se kya prob hai jabki bjp hi ek secular party hai congress toh muslim party lagti hai...
dukh toh isibaat ka hai ki hindu hi yeh sab kehte hai hindu ke against :(
and sabse badi baat hum 80% hindu ki wajah se hi india secular hai...
congress ko bas vote se matlab hai country se nahi ...
ab inko hamari parampara and sanskriti se bhi prob hai ab kaha gai in logo ke secular views ??
koi aur kuch kare toh no prob and hum pooja karle toh yeh sab drame ...
varun gandhi ko hi dekh lo and humare minority minister ko toh hath tak nahi lagaya ???
bhaiyo VOTE FOR BJP to have better future and better India
and thanks shubham for this blog
bahut damdaar baat kahi hai bhai ..
ReplyDeleteवाह भाई वाह
ReplyDeleteमजा आ गया इतनी बेबाक और स्पष्ट बात रखने के लिए..............
पहली बार ही आपका ब्लॉग देखा है और दिल अ गया ...........अडवानी जी के बारे में आजकर सारे के सारे चैनल उल्टा प्रचार कर रहे हैं. ज्यादातर पत्रकार या हो सकता है चैनल वाले इस बात के ल्किये जिमेवार हों............पर कम से कम इनको अपने अन्दर झाँक कर देखना कहिये.......ये क्या परोस रहे हैं जनता को
शुक्रिया abc(??), शोभित भाई और दिगम्बर भाई...
ReplyDeletebahut acchi baat kahi ...
ReplyDeleteapke blog ki charcha yahan par zarror dekhein.
@ दर्पण साह "दर्शन"
ReplyDeleteशुक्रिया.. :)
दर्पण'
ReplyDeleteदर्पण का पर्यायवाची आदर्श होता है
आदर्श का अर्थ हम सर्व श्रेष्ठ ध्येय से लगते है
आपका ध्येय उत्कृस्ट है इसलिए आपकी कलम में दम है
परमात्मा आपकी यह शक्ति और सत्य के प्रति धर्म निष्ठां बनाये रखे
शुभम
ReplyDeleteतुमतो जगत के सुभता के प्राण हो
बधाई
@गर्दूं-गाफिल
ReplyDeleteहौसला-अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
jeete raho bachva.aaj tumhara blog pada,maja aa gaya.garve hai apne shubhi par.rahi bat in tathakathit secular ki,ye sabhi aakao ke talue chatne wale bhade ke tattu hai. wo bander hai jinhe inke madari tukde khila kar nacha rahe hai.inko kya kahe inki to aatma chand rupio ke badle girvi padi hai.ye kya jane desh samaj ki jimmedari
ReplyDelete@ Vijay Uncle
ReplyDeleteनमस्ते अंकल,
आपने बिलकुल सही फ़रमाया, ये लोग अपनी आत्मा बेच चुके हैं..!! आप ब्लॉग पर आये और आपको अपने बच्चे की लिखावट पसंद आयी, ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है. अपना आशीर्वाद हमेशा बनाये रखे, आपके आशीर्वाद के बिना आपका शुभी अधूरा है...
जय हिंद....
शुभम जी, अपने मित्र डॉ विजय नागपाल जी की तारीफ की वजह से आपके ब्लॉग पर आया हूं. आपकी चिंता में मैं भी शरीक़ हूं, बावज़ूद इस बात के मैं, आपकी भाषा में, तथाकथित सेक्युलर हूं, और इस बात के लिए क़तई शर्मिन्दा नहीं हूं. मुझे अपने विचार रखने का उतना ही हक़ है, जितना आपको या किसी और को है.
ReplyDeleteअसल में आपकी ज़्यादातर शिकायतें तो मीडिया से है. लेकिन एक हद तक मुझे लगता है कि इसके लिए हम भी ज़िम्मेदार हैं. हम ही तो यह सारा कूड़ा देखते - झेलते हैं. हम कहां इसका ज़रा भी प्रतिरोध करते हैं? अगर हम इन मीडिया वालों को लिखें कि बहुत हो गई यह बेहूदगी, तो शायद कुछ तो असर पड़े.
वैसे, आडवानी जी ने जो विदेशी धन के बारे में कहा, वह सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन उसकी क्रियान्विति क्या सम्भव हो पाएगी? अगर उनकी सरकार भी आ जाए? क्या हमारे नेताओं को ऐसे वादे करने से बाज नहीं आना चाहिए जो वे पूरे कर ही नहीं सकते हैं? आप स्विस बैंकों की बात करें उससे पहले ज़रा अपने गिरेबां में तो झांकें. चुनावों पर जो हमारे सारी ही पार्टियों के उम्मीदवार बेतहाशा पैसा खर्च करते हैं, वह काला है या सफेद? वह कहां से आ रहा है? प्रमोद महाजन क्या चीज़ थे? बहुत सारी बातें हैं. भाई! चीज़ें काली और सफेद ही नहीं हैं, उनके बहुत सारे शेड्स हैं. फिर भी, आपकी चिंता की मैं सराहना करता हूं.
@दुर्गाप्रसाद जी
ReplyDeleteनमस्ते सर, सबसे पहले आपका आभार कि आपने अपने बेशकीमती शब्दों की रौशनी यहाँ बिखेरी....दिल से धन्यवाद्!!
मेरी नाराज़गी 'secular' नहीं, 'SICKular' तबके से है. आपने कहा आप 'secular' हैं, और आपको इस बात का गर्व है. सर आधे से ज्यादा हिंदुस्तान 'secular' है और मुझे भी अपने देश पे नाज़ है. अगर 'secularism' की सही परिभाषा को मापदंड मान के देखें तो शायद ये बच्चा भी इसी श्रेणी में आता है. :)
अपना आर्शीवाद बनाये रखे, इस पीढ़ी के लिए आपका ज्ञान और अनुभव प्रेरणा स्रोत है. सादर नमन.
I couldn't agree with you more.
ReplyDeleteशुभम
ReplyDeleteआवारा कलम के कदम क्यूँ गए हैं थम
बहुत बह गया है यमुना का पानी
दिल्ली में नेताओं को चढ़ी है जवानी
वादा है तुम्हारा सूखे न स्याही
होने दो फायर भेले हों हवाई
@Swapna - chalo kbahi ek pyali chai ke saath iss mudde pe baithenge.. :)
ReplyDelete@गर्दूं-गाफिल - जब तक आप जैसे गुणी लोगों का आशीर्वाद है, मेरी आवारा कलम नहीं थमेगी.. बहुत शुक्रिया.. :)