"बराबर जब तराजू तोलती है,
भेद गहरे से गहरा खोलती है..
मेरी कलम तो वो आईना है,
ये जैसा देखती है वैसा बोलती है..!!"
मैं शुभम मंगला, profession से copywriter और passion से writer. मुझे लगता है रचनात्मकता समय के साथ परिवर्तित होती है...होनी भी चाहिए!! मेरी 'आवारा कलम' भी उसी रचनात्मकता की कड़ी है...कड़ी, जो समय के साथ ना सिर्फ परिवर्तित हो रही है, पर शायद परिपक्व भी हो रही है...
मेरे इस ब्लॉग पर शब्दों कि हाँडी धीमी आँच पे पकती रहेगी.. कभी कहानियों का हलवा तो कभी ग़ज़लों/कविताओं कि खीर परोसता रहूँगा.. बहुत ही सरल शब्दों में... ना गूढ़ हिंदी ना ही खालिस उर्दू... वों भाषा जो हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं, ताकि खाने वालों का ज़ायका बना रहे...
चखने के बाद बताइयेगा ज़रूर कि क्या कमी रह गयी ताकि अगली बार बराबर मसालें डालूँ...!!
शुभ~कामनाओं सहित...
shubhAM
shuruaat achi hai. jai ganesh
ReplyDeleteउधार से शुरूआत।
ReplyDeleteकविता में भी उधार
करें अपनी आदतों में सुधार
खुद ही लिखें रोज ही धारदार।
koi kami nai he bhaiya sab masale ekdum thik dale he...v.nice...
ReplyDeleteThanks Prabhat bhai, Avinash ji..
ReplyDeleteGeetu.. :)