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Friday, January 21, 2011

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा"

सुभाष चन्द्र बोस जी की जयंती पर उन्हें, और उनका साथ देने वाले आज़ादी के सभी दीवानों को शत शत नमन! इस पावन अवसर पर कवि गोपाल प्रसाद 'व्यास' जी की कविता से कुछ पंक्तियाँ..


बोले सुभाष इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है,

लो ये काग़ज़ है कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरने वाले जन को सर्वस्व समर्पण करना है,

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है..

ये साधारण पत्र नहीं आज़ादी का परवाना है,

इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिरना है!

साहस से भरे युवक उस दिन देखा बढ़ते ही जाते थे,

चाकू छुरियों कटारियों से अपना रक्त गिराते थे..

फिर उसी रक्त की स्याही में वो अपनी कलम डुबाते थे,

आज़ादी के परवाने ऐसे हस्ताक्षर करते जाते थे..!!